आख़िर क्यों बढ़ रहा है लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड ?

आख़िर क्यों बढ़ रहा है लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड ?
लेखक – नैवेद्य पुरोहित

“मैं आज जिस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हूं उससे शादी करने की पूरी कोशिश करूंगी, लेकिन मेरे लिए माता-पिता से बढ़कर कोई नहीं है”। “मैं काफी सकारात्मक हूं कि वे इस फैसले में मेरे साथ रहेंगे”। “मैं और मेरा पार्टनर दोनों अपने लक्ष्यों को हासिल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ताकि हम अपने माता-पिता से इसके बारे में आसानी से पूछ सकें”। यह सब कहना है बीते 3 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही पूनम का। राजस्थान के मध्य-पश्चिम क्षेत्र के नागौर के पास छोटे से शहर ‘कुचामन’ से ताल्लुक रखने वाली पूनम वर्तमान में पिछले 1 साल से बीपीओ में काम कर रही हैं और फिलहाल वे नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट ( नेट) की परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। पूनम बीते 3 साल से लगातार लिव-इन में रह रही है उनका इस मसले पर कहना है, “लिव इन रिलेशनशिप एक ऐसा रिश्ता है जहां दो लोग जो आपस में प्यार करते है साथ में रहने का निर्णय लेते हैं ताकि वे एक दूसरे को अच्छे से जान पाएं और एक रिश्ता तब ही ज्यादा अच्छा हो पाता है जब आप आपके पार्टनर को अच्छे से जानते हैं।“ आखिर लिव इन की उन्हें जरूरत क्या पड़ी इस पर पूनम का कहना था कि, “सबसे पहली चीज यह कि मेरे लिए लिव इन कोई जरूरत नहीं थी यह सिर्फ एक अच्छा जरिया था एक दूसरे को जानने का लिव इन रिलेशनशिप को मैंने एक जरूरत के तौर पर कभी नहीं देखा है।“ अपने पुरुष साथी और खुद के बीच जिम्मेदारियों का किस तरीके से बंटवारा कर पाती हैं इस पर उनका कहना था, “हम दोनों आपस में घर की जवाबदारियों से लेकर बाहर की सबकुछ मिलजुल कर काम करते हैं चाहे वह खाना बनाने से लेकर डीप कन्वर्सेशन तक क्यों ना हो मेरा पार्टनर शुरू से ही मेरे लिए डेडीकेटेड रहा है और सबसे अच्छी बात यह है कि यह कभी बदला नहीं है शुरू से ही जैसा था वैसा है आज लगभग 3 साल हो गए हैं हमारे रिश्ते को और 2 साल लिव इन के समय बीतने के साथ हमारा प्यार कभी फीका नहीं पड़ा और हम दोनों एक दूसरे के इस खूबसूरत रिश्ते को हमेशा ऐसे ही बनाए रखने के लिए कोशिश करते हैं”। कानूनी अड़चनों पर पूनम का कहना था, “अभी तक तो कानूनी रूप से हमें कोई दिक्कत नहीं आई है और फायदा मुझे यह मिला है जिस दिन से मैं उसके साथ लिव-इन में रह रही हूं मैंने उसे और अच्छे तरीके से जाना है मुझे यह मालूम पड़ा कि वह किस तरीके से सोचता है, वह किस तरीके से घर की जवाबदारी का प्रबंध करता है, कैसे लोगों को मैनेज करता है और इसके अलावा मैंने भी बहुत सारी चीजें उससे सीखी वित्तीय प्रबंधन से लेकर कैसे पुलिस काम करती है कार सीखने से लेकर गेम्स खेलना और भी बहुत कुछ उसने मुझे ज्यादा स्पष्ट किया है कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं”। क्या समाज ने उन्हें स्वीकार किया है इस पर पूनम का कहना था ,”हमें नहीं पता कि समाज हमें स्वीकारने को तैयार है या नहीं मैं खुश हूं सब चीजें शान्ति के साथ चल रही है और मैंने लिव इन का कोई नुकसान आज तक नहीं भोगा”। आगे भविष्य की क्या रुपरेखा है ? इस पर वे कहती हैं कि “भविष्य के बारे में किसी को भी कुछ नहीं पता पर हम हमारा बेस्ट दे रहे हैं ताकि हम आखिर समय तक साथ में रह सके।“
बदलते वक्त के साथ आज के भारतीय समाज में जो एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है वह है लिव इन रिलेशनशिप। आज जब भी हम लिव इन रिलेशनशिप की बात करते है तो इसका अर्थ पाते है कि एक प्रेमी जोड़ा जो बिना शादी किए एक ही छत के नीचे पति पत्नी की तरह रहता है। अगर हम लिव-इन रिलेशनशिप के प्रकार की बात करें और उसे मोटे तौर पर देखें तो लिव-इन रिलेशनशिप के प्रकार को समझने के लिए इन्हें तीन अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जा सकता है।

पहला ,
किसी भी अविवाहित प्रेमी जोड़े के बीच लिव-इन रिलेशनशिप।

दूसरा ,
दो व्यक्तियों के बीच लिव-इन संबंध जिसमें एक या दोनों विवाहित हैं।

तीसरा ,
समान-यौन भागीदारों के बीच लिव-इन संबंध।

ये तीन तरह के लिव-इन रिलेशनशिप होते हैं जहां सबसे आम अविवाहित जोड़ों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप को माना जाता है।

इनशॉर्ट्स, एक समाचार ऐप ने 2018 में मई के दूसरे सप्ताह में 1.4 लाख नेटिज़न्स (इंटरनेट पर सक्रिय लोग, नेट के नागरिक) का सर्वे किया जो 18-35 वर्ष की आयु वर्ग के थे। सर्वेक्षण के अनुसार, 80 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप एक बेहतर विकल्प होता है हालांकि अभी भी भारतीय समाज में इसे एक टैबू माना जाता है जबकि 47 प्रतिशत से अधिक भारतीयों की राय यह है कि शादी और आजीवन लिव-इन के बीच चुनाव करे तो शादी एक बेहतर उपाय होता है।
80 प्रतिशत से अधिक भारतीयों ने यह भी कहा है कि वे जीवन जीने के इस तरीके के रूप में लिव-इन का समर्थन करते हैं। इनमें से 26 प्रतिशत लोगों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि वे विवाह के विकल्प के रूप में आजीवन लिव-इन को चुनेंगे। हमारे भारतीय समाज ने आज चाहे कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ली हो या आधुनिकता की होड़ में चाहे कितने भी आधुनिक क्यों न बन गए हो पर वास्तव में जब बात लिव इन रिलेशनशिप की आती है तो इसी समाज के लोगों द्वारा इस रिश्ते को घोषित रूप से अनैतिक आपराधिक और न जाने क्या-क्या घोषित किया गया है। इस सबके अलावा भारत में ऐसे कई दबाव समूह हैं जो पहले भी और आज भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लड़के लड़कियों को धमकाते हुए आए हैं और बात-बात में उनके परिजनों को भी बीच में घसीटते रहे हैं।
आखिर क्या वजह है जो हमारा समाज आज भी लिव इन रिलेशनशिप को नैतिक नहीं मानता है और इसे निजी ना मानते हुए सामाजिक और नैतिक रूप से सही या गलत ठहराता है। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसमें दो व्यस्क अपनी मर्जी से शादी किए बिना लंबे समय तक एक घर में साथ रहते है जो कि एक निजी मसला होता है। एक ऐसी स्थिति जहां दो बालिग लोग आपसी सहमति से साथ में रहते हैं उसे निजी मामला न बनाते हुए एक सामाजिक मुद्दा माना जाता है। उन बालिगों का आपस में रिश्ता पति-पत्नी की तरह होता है लेकिन उन दोनों के बीच कोई शादी जैसा बंधन नहीं होता है।

कानून की नज़र में लिव-इन रिलेशनशिप

लिव-इन रिलेशनशिप के लिए कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है। यह विवाह से बस थोड़ा सा ही अलग है। लेकिन भारत के उच्चतम न्यायालय ने लिव इन को परिभाषित करते हुए अनेकों बार यह कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप में भी अधिकार और कर्तव्य होते हैं। एक वाजिब सवाल यहां यह उठता है कि क्या विवाहित रहते हुए कोई व्यक्ति किसी दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकता है ? वर्तमान समय में भारत में इस पर संसद द्वारा पारित कोई कानून नहीं है अपितु समय-समय पर आने वाले न्यायालयीन प्रकरणों में भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में विवाह के होते हुए लिव इन को परिभाषित किया है और समझाया है।
क्या विवाह के होते हुए लिव इन में रहना अपराध है ? इस सवाल का जवाब हाल ही में पंजाब उच्च न्यायालय ने हाल ही के एक स्थानीय मामले में यह स्पष्ट किया था कि विवाह के होते हुए लिव इन में रहना किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं है। दो बालिग पक्षकार आपसी सहमति से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं और इस पर कोई प्रकरण नहीं बनेगा क्योंकि वर्तमान में भारत में अवैध रूप से बनाएं जाने वाले यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। यदि यह दोनों पक्षकार आपस में विवाह कर लेते हैं तो फिर आपराधिक प्रकरण बन जाएगा लेकिन लिव इन के रहते हुए कोई भी आपराधिक प्रकरण नहीं बन सकता। लिव इन के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी कई दफा दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं जिसमें यह बताया गया है कि लिव इन चोरी छुपे नहीं होना चाहिए बल्कि वह स्पष्ट होना चाहिए और जनता में इस बात की जानकारी होना चाहिए कि यह दो लोग आपस में बगैर विवाह के लिव-इन में रह रहे हैं।

लिव इन रिलेशनशिप से होने वाले संतान के अधिकार

यदि लिव इन में रहते हुए कोई संतान की उत्पत्ति होती है तब वह संतान माता-पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार भी रखेगी लेकिन ऐसी संतान को अधर्मज संतान कहा जाता है हालांकि इसके अधिकार एक धर्मज संतान के समान ही होते हैं। बीते वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर पुरुष और महिला सालों तक पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं, तो मान लिया जाता है कि दोनों में शादी हुई होगी और इस आधार पर उनके बच्चों का पैतृक संपत्ति पर भी हक रहेगा। ये पूरा मामला संपत्ति विवाद को लेकर था साल 2009 में केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में पैतृक संपत्ति पर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे पुरुष-महिला के बेटे को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने से मना कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था और कहा कि बेटे को पैतृक संपत्ति पर हक देने से मना नहीं किया जा सकता।

लिव इन रिलेशनशिप की ज़रूरत क्यों ?

अब अगर हम बात करें कि लिव इन रिलेशनशिप की ज़रूरत क्या हैं आखिर लोग लिव इन में रहना पसंद क्यों करते हैं? तो इस सवाल के कई जवाब हो सकते है। आज भी भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा धड़ा यह मानता है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल अपरिपक्व लोग हैं जो जिम्मेदारियों से भागते हैं जिन्हें सीरियस कमिटमेंट नहीं करना होता है। पिछले कुछ समय से भारत में लिव-इन पार्टनर की हत्या के कई सारे दिल दहलाने वाले मामले सामने आए हैं। जिनमें से एक बहुचर्चित श्रृद्धा वालकर हत्याकांड था। ऐसे ज्यादातर केसों में यह देखा गया कि जब भी दोनों कपल में से एक ने भी अपने पार्टनर पर शादी या कमिटमेंट का दवाब बनाया तो दूसरे पार्टनर को वो रिश्ता भारी लगने लग जाता है और जिसका अंत हमारे सामने मर्डर जैसी खौफनाक वारदातों के साथ होता है। दरअसल, कई युवा लिव-इन रिलेशनशिप को मौज मस्ती का एक जरिया मानते रहे हैं जिसमें कोई दवाब या कमिटमेंट को नहीं चाहते हैं। इस तरह के रिश्तों को लोग अपने परिवारवालों के सामने भी बताने से परहेज करते हैं। खासकर शहरों में युवाओं के बीच बिना शादी के एकसाथ रहने का जो ये ट्रेंड बढ़ता जा रहा है जिस रिश्ते में लोग बिना शादी के रूम शेयर करते हैं, बेड शेयर करते हैं प्यार मोहब्बत भी होती और सेक्स भी लेकिन नहीं होता तो बस ‘कमिटमेंट’ और यही वजह है कि ऐसे रिश्तों में क्राइम बढ़ रहा है।
वहीं दूसरी ओर कई लोग यह भी मानते हैं कि कपल इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं ताकि वे यह तय कर सकें कि दोनों शादी करने जितना अनुकूल हैं या नहीं। दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानने के लिए साथ रहते हैं।

लॉ प्रोफेसर की राय

बेनेट यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लॉ के प्रोफेसर डॉ. अवीनिश सिंह का कहना है कि , “भारत में लिव-इन रिलेशनशिप कानूनी रूप से शादी नहीं है लेकिन यह गैरकानूनी भी नहीं है।“ “हमारे कानून ने ‘सहवास’ की अवधारणा को मान्यता दी है जिसका अर्थ होता है कि विवाह के बिना जीवन साथी के रुप में साथ रहना सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में एक महत्वपूर्ण फैसले में तय किया था कि सहमति वाले व्यक्ति के बीच लिव इन रिलेशनशिप में साथ रहना गैरकानूनी नहीं है और यह कोई अपराध भी नहीं है पर भारत में लिव इन रिलेशनशिप के कुछ कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है जैसे कि घरेलू हिंसा , संपत्ति के अधिकार आदि।“ “लिव इन रिलेशनशिप में दोनो साथी का एक दूसरे की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता है जब तक कि उन दोनों के बीच में कोई लिखित समझौता ना हुआ हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी दो व्यस्कों के साथ रहने के अधिकार को माना है और इसे उनकी स्वतंत्रता का हिस्सा माना है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि लिव इन रिलेशनशिप की स्थिति के लिए आपको किसी भी पंजीकृत या विशेष कानूनी दस्तावेज की जरूरत नहीं होती है और ऐसे रिश्ते से यदि किसी संतान का जन्म होता है तो उसको भी संपत्ति का अधिकार दिया जाएगा।“ “भारतीय कानून के तहत लिव इन में रहने वाले कपल को अपने रिश्तेदारों या उन लोगों को अपने रिश्ते के बारे में सूचित करने की आवश्यकता होती है जो आपके साथ रहते हैं इससे बचने के लिए अधिकांश जोड़ों को आपसी समझाते पर अनुबंध करना पड़ता है”। “वहीं दूसरी तरफ आजकल कुछ राज्यों ने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ विधियों को लागू किया है कि एक साथ रहने वाले जोड़े को विवाहित जोड़ों जैसा कुछ लाभ मिल सके। जैसे कि उत्तराखंड राज्य में उत्तराखंड संयुक्त रहने के अधिकार विधेयक 2019 द्वारा एकसाथ रहने वाले जोड़े को विवाहित जोड़ें के समान अधिकार दिए दिए गए हैं।“

भारतीय संविधान के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप

भारतीय संविधान के अनुसार यदि लिव इन रिलेशनशिप को देखा जाए तो हम पाएंगे कि सामाजिक स्तर पर लिव इन को भले ही मान्यता नहीं दी जाती हो तथा विभिन्न धर्मों में इसे मान्यता न दी जाती हो परंतु भारतीय संविधान लिव इन रिलेशनशिप को कोई अपराध नहीं मानता है। भारत में लिव इन जैसी प्रथा वैध है तथा कोई भी दो लोग लिव इन में रह सकते हैं यह भारतीय विधि में पूर्णतः वैध है। हालांकि अभी तक तो भारत की संसद तथा किसी स्टेट के विधानमंडल ने लिव इन रिलेशनशिप पर कोई व्यवस्थित सहिंताबद्ध अधिनियम का निर्माण नहीं किया है परंतु घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2( f ) के अंतर्गत लिव इन की परिभाषा हमें प्राप्त होती है क्योंकि घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत लिव इन में साथ रहने वाले लोग भी संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं और उनके भी अधिकार हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2( f ) के अनुसार
“घरेलू नातेदारी से ऐसे दो व्यक्तियों के बीच नातेदारी अभिप्रेत है जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं या एक अविभक्त कुटुंब के रूप में एक साथ रहने वाले उस कुटुंब के सदस्य हैं।“ घरेलू हिंसा अधिनियम की इस धारा से यह प्रतीत होता है कि लिव इन जैसे संबंधों को भारतीय विधानों में स्थान दिया गया है। इस धारा के अतिरिक्त समय-समय पर उच्चतम न्यायालय में लिव इन से संबंधित मुकदमे आते रहे हैं जिन पर लिव इन जैसी व्यवस्था को लेकर विधानों का निर्माण होता रहा है। इसके अलावा भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय भी किसी सहिंताबद्ध कानून जैसा स्थान रखते हैं तथा किसी संहिताबद्ध कानून के अभाव में उच्चतम न्यायालय के दिए गए निर्णय कानून की तरह कार्य करते हैं। भले ही कोई सहिंताबद्ध कानून लिव इन व्यवस्था के संदर्भ में उपस्थित नहीं हो परंतु उच्चतम न्यायालय के न्याय निर्णय लिव इन से संबंधित व्यवस्था पर मार्गदर्शन कर रहे हैं। इस सबके बीच एक सबसे महत्वपूर्ण बात आती है वह यह है कि हमारे भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में ही लिव इन रिलेशनशिप की जड़ बसी हुई है। न्यायपालिका से संबंधित खबरों को आसान भाषा में बताने वाले मीडिया संस्थान के अनुसार लिव-इन रिलेशनशिप की जड़ कानूनी तौर पर एक आम भारतीय नागरिक को दिए गए मौलिक अधिकारों में बसी हुई है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद है। अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी और अधिकार को अनुच्छेद 21 से अलग नहीं माना जा सकता। आखिर क्या कहता है भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में बसा अनुच्छेद 21 ? भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि “किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है”।

केस स्टडी :- पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस
साल 2001 में पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि एक आदमी और औरत को अधिकार है अपनी मर्जी से एक-दूसरे के साथ बिना शादी किए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का। कोर्ट ने यह भी जोड़ा था कि हालांकि हमारा समाज लिव-इन रिलेशनशिप को अनैतिक मानता है मगर कानून के हिसाब से न तो ये गैर-कानूनी है और न ही अपराध है। पायल शर्मा बालिग है और उसे अधिकार है कि वह कहीं भी जा सकती है और किसी के भी साथ रह सकती है। एक पुरुष और एक महिला बिना शादी किए भी अगर वे चाहें तो एक साथ रह सकते हैं। इसे समाज द्वारा अनैतिक माना जा सकता है लेकिन यह अवैध नहीं है। कानून और नैतिकता में अंतर है। पायल शर्मा कहीं भी जा सकती है और अपनी इच्छानुसार किसी के भी साथ रह सकती है।

Infographic Made by Me on Live-in Relationship.

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