मुझे सपने देखने की भी इजाजत नहीं थीः मान्या
-माधव शर्मा
‘मैं सागर से भी गहरी हूँ,
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे,
उन्हें चुन-चुनकर आगे बढूँगी मैं,
तुम कितना मुझको रोकोगे’
- यह कहना है मिस इंडिया 2020 की रनर-अपमान्या सिंह का। हाल में बेनेट यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित किए गए टेड टॉक शो में जब मान्या स्पीकर के रूप में शामिल हुईं, तो उन्होंने अपनी जिंदगी के कई पहलुओं को दर्शकों के साथ साझा किया। उन्होंने कहा कि जिंदगी कई सबक देती हैं, इसके हर पड़ाव में कई दिक्कतें आती हैं। उन्हें पार कर ही कोई कामयाब बनता है, उनसे हार कर नहीं।
मां हैं मेरी सबसे बड़ी टीचर
‘अगर तुम्हें कुछ करना है तो तुम अपनी जिंदगी कुएं के मेंढक की तरह नहीं बिता सकते। जिंदगी में कुछ हासिल करने के लिए हाथ-पांव चलाने पड़ेंगे, उस कुएं से बाहर निकलना पड़ेगा।’ यह सीख मान्या की मां ने उन्हें दी थी, जिसे याद रखते हुए वह 14 साल की उम्र में मुंबई गईं। मान्या बताती हैं कि जब वह सपनों के इस शहर में पहली बार आई थीं तो उनके पास कुछ बनने के हौसले के सिवा कुछ नहीं था। वह बताती हैं कि जब भी उनके जेहन में जिंदगी की मुश्किलों से हार मान लेने का ख्याल आता तो वह यह सोचकर खुद को प्रोत्साहित करती थीं कि यह सफर सिर्फ उनका नहीं है, बल्कि उनकी माँ का भी है। मान्या बताती हैं कि सपने देखने की आज़ादी उन्हें मुंबई पहुंचने के बाद मिली।
सोचा न था कि मिस इंडिया बनूंगी
मान्या के अनुसार मिस इंडिया बनने की उनकी कोई योजना नहीं थी। उन्होंने बचपन में कभी भी यह नहीं सोचा था कि वह बड़ी होकर मिस इंडिया बनना चाहती हैं। वह बस कुछ बहुत अलग करना चाहती थीं। अपनी पारिवारिक स्थितियों का जिक्र करते हुए मान्या ने कहा कि उन्हें अपना बचपन दिल खोल कर जीने का मौका नहीं मिला। वह बचपन से बेहद जिम्मेदार व्यक्ति थीं। उन्हें अपने बड़ों से काफी कुछ सीखने को मिला।
मान्या के अनुसार जिस जगह से वह आती हैं, वहां लोग लड़कियों को शिक्षा इसलिए देते हैं ताकि अगर उनकी सरकारी नौकरी लग जाए तो कम दहेज देना पड़े। अपने इर्दगिर्द इस
किस्म की मानसिकता वाले माहौल के बावजूद मान्या ने अपने सपने को साकार करने की जंग लड़ी। इसके लिए उन्होंने अपना घर छोड़ा, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
‘मैं सागर से भी गहरी हूँ,
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे,
उन्हें चुन-चुनकर आगे बढूँगी मैं,
तुम कितना मुझको रोकोगे’
- यह कहना है मिस इंडिया 2020 की रनर-अप
मां हैं मेरी सबसे बड़ी टीचर
‘अगर तुम्हें कुछ करना है तो तुम अपनी जिंदगी कुएं के मेंढक की तरह नहीं बिता सकते। जिंदगी में कुछ हासिल करने के लिए हाथ-पांव चलाने पड़ेंगे, उस कुएं से बाहर निकलना पड़ेगा।’ यह सीख मान्या की मां ने उन्हें दी थी, जिसे याद रखते हुए वह 14 साल की उम्र में मुंबई गईं। मान्या बताती हैं कि जब वह सपनों के इस शहर में पहली बार आई थीं तो उनके पास कुछ बनने के हौसले के सिवा कुछ नहीं था। वह बताती हैं कि जब भी उनके जेहन में जिंदगी की मुश्किलों से हार मान लेने का ख्याल आता तो वह यह सोचकर खुद को प्रोत्साहित करती थीं कि यह सफर सिर्फ उनका नहीं है, बल्कि उनकी माँ का भी है। मान्या बताती हैं कि सपने देखने की आज़ादी उन्हें मुंबई पहुंचने के बाद मिली।
सोचा न था कि मिस इंडिया बनूंगी
मान्या के अनुसार मिस इंडिया बनने की उनकी कोई योजना नहीं थी। उन्होंने बचपन में कभी भी यह नहीं सोचा था कि वह बड़ी होकर मिस इंडिया बनना चाहती हैं। वह बस कुछ बहुत अलग करना चाहती थीं। अपनी पारिवारिक स्थितियों का जिक्र करते हुए मान्या ने कहा कि उन्हें अपना बचपन दिल खोल कर जीने का मौका नहीं मिला। वह बचपन से बेहद जिम्मेदार व्यक्ति थीं। उन्हें अपने बड़ों से काफी कुछ सीखने को मिला।
मान्या के अनुसार जिस जगह से वह आती हैं, वहां लोग लड़कियों को शिक्षा इसलिए देते हैं ताकि अगर उनकी सरकारी नौकरी लग जाए तो कम दहेज देना पड़े। अपने इर्दगिर्द इस
किस्म की मानसिकता वाले माहौल के बावजूद मान्या ने अपने सपने को साकार करने की जंग लड़ी। इसके लिए उन्होंने अपना घर छोड़ा, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
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