“औरतों की देह पर लड़े गए हैं दुनिया में ज्यादातर युद्ध“किताब- देह ही देश की लेखिका डॉ. गरिमा ने बेनेट के छात्रों से साझा किए अपने अनुभव
इशिका बुबना, बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा
“दुनिया में ज्यादातर युद्ध औरतों की देह पर लड़े गए हैं। युद्ध के दौरान सैनिकों को औरतों की देह सौंप कर पुरस्कृत किया गया है। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे हमारा समाज देखकर भी अनदेखा कर देता है।“ – ये विचार देह ही देश जैसी बेहतरीन किताब लिखनेवाली प्रख्यात लेखिका डॉ.गरिमा श्रीवास्तव के हैं। डॉ. गरिमा ने हाल में ग्रेटर नोएडा द्वारा छात्रों के लिए आयोजित अतिथि व्याख्यान में अपनी किताब के कुछ अंशों पढ़े और इस मुद्दे पर छात्रों के साथ विचार-विमर्श किया। डॉ. गरिमा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केन्द्र में प्रोफ़ेसर हैं। यह किताब उन्होंने क्रोएशिया के ज़ाग्रेब विश्वविद्यालय में शिक्षण प्रवास के दो वर्षों के दौरान लिखी है। इसके अलावा उनकी दर्जन से अधिक किताबें और शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
झलकी क्रोएशिया की महिलाओं की पीड़ा
बेनेट यूनिवर्सिटी में हिन्दी पत्रकारिता के छात्रों से विचार-विमर्श के दौरान उन्होंने बताया कि डायरी शैली में लिखी गई उनकी किताब- देह ही देश असल में क्रोएशिया की उन महिलाओं की कहानी है, जिन्होंने युद्ध के समय दैहिक और मानसिक पीड़ाएं सहन की है। उन महिलाओं की व्यथा सुनकर रूह कांप जाती है। डॉ. गरिमा के अनुसार यह किताबी डायरी हमें उस इतिहास से रूबरू कराती है जो शायद कई लोगों के लिए अनसुनी है। उल्लेखनीय है कि कई भारतीय भाषाओं में अनूदित इस किताब के लिए डॉ.. गरिमा को पाठकों के साथ-साथ तमाम आलोचकों से भी खूब सराहना मिली। एक बेहतरीन लेखिका होने के साथ-साथ डॉ. गरिमा कथा लेखन, भारतीय साहित्य, साहित्य के समाजशास्त्र और महिलाओं की आत्मकथा की विशेषज्ञ भी हैं।
‘द्रवित कर देती है अत्याचारों की कहानी’
इस किताब के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए हिन्दी पत्रकारिता की छात्रा नित्या आहूजा ने बताया कि किताब में वर्णित महिलाओं पर हुए अत्याचारों की कहानी हमारे मन को इतनी द्रवित करने वाली है कि एक साथ 20 पन्ने पढ़ना मुश्किल हो जाता है। उन महिलाओं की आपबीती पढ़कर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि लेखिका के लिए यह किताब लिखना कितना कठिन रहा होगा। अतिथि व्याख्यान (गेस्ट लेक्चर) के दौरान नित्या ने युद्ध के दौरान यातना झेलने वाली क्रोएशिया की महिलाओं की स्थिति के बारे में कई सवाल पूछे।
हिन्दी पत्रकारिता के एक अन्य छात्र माधव शर्मा ने किताब से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में बताया कि किताब असल में जीवन की उस कड़वी सच्चाई पर रोशनी डालती है जिसे या तो हम देखना नहीं चाहते या देखते हुए भी अनदेखा कर देते हैं। माधव कहते हैं कि क्रोएशिया की महिलाओं की पीड़ा को व्यक्त करने वाली ये कहानियां हमें कई सबक दे जाती हैं। वह कहते हैं कि इन कहानियों को पढ़कर महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में कुछ बदलाव तो जरूर आया होगा।
लेखिका गरिमा श्रीवास्तव से जब हमने पूछा कि उन्होंने किताब का नाम ‘देह ही देश’ क्यों रखा? इस पर उन्होंने कहा कि आखिर हम इस तथ्य से कैसे इनकार कर सकते हैं कि दुनिया में अधिकतर युद्ध औरतों की देह पर लड़े गए हैं। ऐसे में किताब का यह नाम (देह ही देश) एक सही फैसला था।
“दुनिया में ज्यादातर युद्ध औरतों की देह पर लड़े गए हैं। युद्ध के दौरान सैनिकों को औरतों की देह सौंप कर पुरस्कृत किया गया है। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे हमारा समाज देखकर भी अनदेखा कर देता है।“ – ये विचार देह ही देश जैसी बेहतरीन किताब लिखनेवाली प्रख्यात लेखिका डॉ.
झलकी क्रोएशिया की महिलाओं की पीड़ा
बेनेट यूनिवर्सिटी में हिन्दी पत्रकारिता के छात्रों से विचार-विमर्श के दौरान उन्होंने बताया कि डायरी शैली में लिखी गई उनकी किताब- देह ही देश असल में क्रोएशिया की उन महिलाओं की कहानी है, जिन्होंने युद्ध के समय दैहिक और मानसिक पीड़ाएं सहन की है। उन महिलाओं की व्यथा सुनकर रूह कांप जाती है। डॉ. गरिमा के अनुसार यह किताबी डायरी हमें उस इतिहास से रूबरू कराती है जो शायद कई लोगों के लिए अनसुनी है। उल्लेखनीय है कि कई भारतीय भाषाओं में अनूदित इस किताब के लिए डॉ.. गरिमा को पाठकों के साथ-साथ तमाम आलोचकों से भी खूब सराहना मिली। एक बेहतरीन लेखिका होने के साथ-साथ डॉ. गरिमा कथा लेखन, भारतीय साहित्य, साहित्य के समाजशास्त्र और महिलाओं की आत्मकथा की विशेषज्ञ भी हैं।
‘द्रवित कर देती है अत्याचारों की कहानी’
इस किताब के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए हिन्दी पत्रकारिता की छात्रा नित्या आहूजा ने बताया कि किताब में वर्णित महिलाओं पर हुए अत्याचारों की कहानी हमारे मन को इतनी द्रवित करने वाली है कि एक साथ 20 पन्ने पढ़ना मुश्किल हो जाता है। उन महिलाओं की आपबीती पढ़कर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि लेखिका के लिए यह किताब लिखना कितना कठिन रहा होगा। अतिथि व्याख्यान (गेस्ट लेक्चर) के दौरान नित्या ने युद्ध के दौरान यातना झेलने वाली क्रोएशिया की महिलाओं की स्थिति के बारे में कई सवाल पूछे।
हिन्दी पत्रकारिता के एक अन्य छात्र माधव शर्मा ने किताब से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में बताया कि किताब असल में जीवन की उस कड़वी सच्चाई पर रोशनी डालती है जिसे या तो हम देखना नहीं चाहते या देखते हुए भी अनदेखा कर देते हैं। माधव कहते हैं कि क्रोएशिया की महिलाओं की पीड़ा को व्यक्त करने वाली ये कहानियां हमें कई सबक दे जाती हैं। वह कहते हैं कि इन कहानियों को पढ़कर महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में कुछ बदलाव तो जरूर आया होगा।
लेखिका गरिमा श्रीवास्तव से जब हमने पूछा कि उन्होंने किताब का नाम ‘देह ही देश’ क्यों रखा? इस पर उन्होंने कहा कि आखिर हम इस तथ्य से कैसे इनकार कर सकते हैं कि दुनिया में अधिकतर युद्ध औरतों की देह पर लड़े गए हैं। ऐसे में किताब का यह नाम (देह ही देश) एक सही फैसला था।
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