आईवार्ट फिल्म फेस्ट में दर्शकों का हुआ सपनों और हकीकत की दुनिया से सामना
संकल्प गुप्ता
आइवार्ट फिल्म फेस्ट के तीसरे दिन की शुरुआत कुछ ऐसी फिल्मों के साथ हुई जिन्होंने, इंसान की रोज़-मर्रा की जिंदगी के संघर्ष (यानि वो जो जिंदगी जी रहा है) और उसकी महत्वकान्शाओं ( या जैसी जिंदगी वो जीना चाहता है) के बींच की कहानियों को दर्शाया है|
इंसान चाहता तो सबकुछ है, पर पाता सिर्फ कुछ है...
यह एहसास मुझे अनुभव करने को मिला, एक फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान जिसका नाम था, “माई हार्ट इस एन ओशन” इस फिल्म में ‘कुछ बच्चे अपनी ख़ुशी के लिए दरिया में से मछली पकड़ते हैं और अपने पास किसी बोतल या बाल्टी में भरकर ज़िंदा रख लेते हैं,
उनमे से एक बच्चे को अपनी मछलियों के लिए एक्वेरियम खरीदने की इच्छा होती है,ताकि वह उन्हें एक साथ रख सके और जब वह इसके लिए दुकान पर जाता है, तो उसकी हालत को देखकर दुकानदार उसे अपनी दुकान से भगा देता है|
अंत में वह यही सोचता है,कि इन मछलियों को समंदर में छोड़ आना ही ठीक है क्योंकि इस तरह बाल्टी और बोतल में वह उन्हें अपने साथ नही रख सकता | इसके बाद बड़े भारी मन से वह उन मछलियों को वापस समंदर में छोड़ आता है|’
“कहानी की स्टोरी-बोर्डिंग से ज्यादा, कहानी पर काम करना ज़रूरी”
यह बातें कही गयी “माई हार्ट इस एन ओशन” की निर्माता तन्वी जदवानी द्वारा, जब उनसे पूछा गया कि “आपने कहानी को कैसे स्टोरीबोर्ड किया?तो उन्होंने बताया कि, “मैंने कहानी की स्टोरी-बोर्डिंग पर इतना ध्यान न देते हुए बस अपनी कहानी पर काम जारी रखा|
फिल्म निर्माता तन्वी जदवानी हॉल में मौजूद सभी दर्शकों से अपना अनुभव साझा करते हुएफोटो:- संकल्प गुप्ता
उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि, ‘उन्हें फिल्मों में बड़ों से ज्यादा, बच्चों के साथ काम करने में ज्यादा मज़ा आता है|’
फिल्में सिखा रही सच्चाई और सरलता का मार्ग
आइवार्ट में अभी तक दर्शाई गयी सभी फिल्में, दर्शकों के मन में आज-कल की दुनिया में भी सच्चाई और अच्छाई लोगों में मौजूद है, और हमें ज़रुरत है तो बस अपना थोडा सा नज़रिया बदलने की|
Bennett University’s Times School of Media is a key partner in the 18thIAWRT Asian Film Festival. Its students are playing an important role as volunteers and rapporteurs.
आइवार्ट फिल्म फेस्ट के तीसरे दिन की शुरुआत कुछ ऐसी फिल्मों के साथ हुई जिन्होंने, इंसान की रोज़-मर्रा की जिंदगी के संघर्ष (यानि वो जो जिंदगी जी रहा है) और उसकी महत्वकान्शाओं ( या जैसी जिंदगी वो जीना चाहता है) के बींच की कहानियों को दर्शाया है|
इंसान चाहता तो सबकुछ है, पर पाता सिर्फ कुछ है...
यह एहसास मुझे अनुभव करने को मिला, एक फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान जिसका नाम था, “माई हार्ट इस एन ओशन” इस फिल्म में ‘कुछ बच्चे अपनी ख़ुशी के लिए दरिया में से मछली पकड़ते हैं और अपने पास किसी बोतल या बाल्टी में भरकर ज़िंदा रख लेते हैं,
उनमे से एक बच्चे को अपनी मछलियों के लिए एक्वेरियम खरीदने की इच्छा होती है,ताकि वह उन्हें एक साथ रख सके और जब वह इसके लिए दुकान पर जाता है, तो उसकी हालत को देखकर दुकानदार उसे अपनी दुकान से भगा देता है|
अंत में वह यही सोचता है,कि इन मछलियों को समंदर में छोड़ आना ही ठीक है क्योंकि इस तरह बाल्टी और बोतल में वह उन्हें अपने साथ नही रख सकता | इसके बाद बड़े भारी मन से वह उन मछलियों को वापस समंदर में छोड़ आता है|’
“कहानी की स्टोरी-बोर्डिंग से ज्यादा, कहानी पर काम करना ज़रूरी”
यह बातें कही गयी “माई हार्ट इस एन ओशन” की निर्माता तन्वी जदवानी द्वारा, जब उनसे पूछा गया कि “आपने कहानी को कैसे स्टोरीबोर्ड किया?तो उन्होंने बताया कि, “मैंने कहानी की स्टोरी-बोर्डिंग पर इतना ध्यान न देते हुए बस अपनी कहानी पर काम जारी रखा|
फिल्म निर्माता तन्वी जदवानी हॉल में मौजूद सभी दर्शकों से अपना अनुभव साझा करते हुएफोटो:- संकल्प गुप्ता
उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि, ‘उन्हें फिल्मों में बड़ों से ज्यादा, बच्चों के साथ काम करने में ज्यादा मज़ा आता है|’
फिल्में सिखा रही सच्चाई और सरलता का मार्ग
आइवार्ट में अभी तक दर्शाई गयी सभी फिल्में, दर्शकों के मन में आज-कल की दुनिया में भी सच्चाई और अच्छाई लोगों में मौजूद है, और हमें ज़रुरत है तो बस अपना थोडा सा नज़रिया बदलने की|
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