बेनेट यूनिवर्सिटी की एनएसएस इकाई ने आईआईटी दिल्ली में लहराया अपना परचम !
Times of Bennett | Updated: Apr 11, 2023 22:23

लेखक - नैवेद्य पुरोहित
हर वर्ष आईआईटी दिल्ली की एनएसएस यूनिट अपना सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव 'काइज़ेन' आयोजित करवाती है जिसे संभवतः किसी एनएसएस यूनिट द्वारा भारत का सबसे बड़ा सामायिक आयोजन माना जाता है। इस बार यह कार्यक्रम 31 मार्च से 02 अप्रैल तक आयोजित किया गया था। विभिन्न प्रतियोगिताओं कार्यशालाओं गोष्ठियों का हर बार की तरह इस बार भी आयोजन किया गया था। बस बदला था तो सिर्फ़ एक पहलू कि बेनेट यूनिवर्सिटी ने पहली बार इस आयोजन में भाग लिया था। उल्लेखनीय है कि बेनेट यूनिवर्सिटी में एनएसएस को शुरू हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है और शुरू होते ही एनएसएस बी यू ने झंडे गाढ़ दिए हैं ! काइज़ेन फेस्ट में बेनेट यूनिवर्सिटी की एनएसएस टीम ने पैरोडी मेकिंग कंपटीशन में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।
आखिर काइज़ेन होता क्या है?
यह एक जापानी शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है काइ + ज़ेन जिसका अर्थ होता है बदलाव + अच्छे के लिए...ऐसा कोई भी बदलाव जो किसी अच्छे कार्य के लिए किया गया हो वह जापानी में 'काइज़ेन' कहलाता है। बहरहाल , यह काइज़ेन नामक फेस्ट के पीछे हम लोगों की एक लंबी कहानी है मुझे याद है आज से बीस-पच्चीस दिन पहले जब बेनेट यूनिवर्सिटी की एनएसएस इकाई के प्रेसिडेंट चिराग भैया ने रात 10:00 बजे अर्जेंट मीटिंग बुलाई थी। उस मीटिंग में हमें आईआईटी दिल्ली के इस फेस्ट की जानकारी लगी थी और हम सभी लोग काइज़ेन की वेबसाइट पर अलग-अलग प्रतियोगिताओं के लिए पंजीकरण कर रहे थे। पूरे एनएसएस रूम में बहुत शोर हो रहा था सभी प्रतियोगिताओं के लिए टीम्स बंट रही थी हर तरफ शोर शराबा मचा हुआ था। आखिर में यह निर्णय हुआ कि मैं जिस टीम का हिस्सा हूं वह सटाईरिकल स्पर्धा एक पैरोडी मेकिंग कंपटीशन में भाग लेगी। प्रतियोगिता में भाग तो हमने ले लिया था और दिए गए पांच विषयों में से हमने विषय भी तय कर लिया था 'भ्रष्टाचार'। लेकिन आखिर पैरोडी होती क्या है यह हम में से किसी को स्पष्ट ही नहीं था और लगभग एक हफ़्ते तक हम एक हास्य नाटक की तैयारी करने लग गए जो कि पूर्णतः गलत दिशा में जा रहा था। हम आठ लोगों की टीम में एक सेकेंड ईयर की संजना दीदी भी थी जो हमारे नाटक तय होने के बाद घर से 27 तारीख को कॉलेज आई थी। उनके आने के बाद ही हमें पैरोडी का वास्तविक अर्थ मालूम पड़ा ! हमें इतना लाचार महसूस होने लगा था क्योंकि अब तक हमने जो किया था सब व्यर्थ रहा...सारी मेहनत व्यर्थ गई लेकिन उसके बावजूद हम थके नहीं और सही तरीके से पैरोडी की तैयारी करने में जुट गए।
पैरोडी का अर्थ किसी शैली की हास्यजनक नक़ल करना कोई लेखन, भाषण या गीत का एक टुकड़ा जो किसी की शैली को मज़ेदार तरीके से कॉपी करता है उसे पैरोडी कहा जाता है। हमने तय किया कि हमारे द्वारा चुना गया विषय भ्रष्टाचार पर हम शाहरुख खान की सुपरहिट फिल्म रही ओम शान्ति ओम के टाइटल ट्रैक सॉन्ग की पैरोडी बनाएंगे गाना गाने के साथ उसे नाटक के द्वारा स्टेज पर परफॉर्म भी करेंगे। गाने के लिरिक्स लिखने की जब बारी आई तो हमने ओम शान्ति ओम का 'ओ स्कैंडल ओ' कर दिया ! 2 दिन की मेहनत के बाद हमने गाने के पूरे लिरिक्स तय कर दिए थे जो इस प्रकार है ,
सुनने वालों सुनो ऐसा भी होता है...
फ्रॉड करता है जो वो इमान भी खोता है ,
फ्रॉड ऐसा जो करता है...
क्या मरके भी मरता है ,
आओ...तुम भी आज सुनलो...
दास्तान है ये के कुछ थे नौजवान जो मन ही मन में
काले धन के थे दीवाने...
वो नेता ही क्या जिसके कारनामों के ,
दुनिया भर में न हो मशहूर अफसाने...
नेता की ये कहानी है जिसको सभी....
कहते हैं ओ स्कैंडल ओ...!
जनता की थी ये आरज़ू ,
उनकी थी ये ही जुस्तजू...
उस नेता में उनको मिले ,
तरक्की के सारे रंग-ओ-बू... (x2)
जनता न जानी ये नादानी है ,
वो नेता को समझे इमानी थे ,
कौन ऐसा था किसलिए था ये कहानी है...
दास्तान है ये के उस मासूम जनता ने ,
जिसे चाहा था वो अंदर से हरजाई...
बेखबर इस बात से उस नेता के उन ख्वाब का अंजाम तो होना बुरा ही था...
झूठी...उम्मीदों की...दास्तान को सभी कहते हैं ओ स्कैंडल ओ....!
सुनने वालों, सुनो ऐसा भी होता है...
चाहे जितने ठगे वो उतना खोता है ,
बेईमान होके ओ नेता पाए क्या लाखों ओ नेता...
आओ तुम भी आज सुन लो ,
दास्तान है ये के उस मासूम जनता ने जिसे चाहा था वो अंदर से हरजाई...
जनता को उम्मीद दिलाकर उनके सारे वोट पाकर ,
उनने एकदिन चोट ही खाई...
हर सदी का फसाना है ,
जिसको सभी कहते हैं ओ स्कैंडल ओ...!
क्यों कोई नेता समझता नहीं ,
ये जुर्म वो है जो छुपता नहीं...
ये दाग वो है जो मिटता नहीं ,
रहता है उम्र भर साथ ही...!
दिल उस किसान का जब था दुखा ,
कर वो अपना चुका न सका...
कोई उसे तो बचा न सका...
मिला था शव उस किसान का...!
दास्तान है ये के जो पहचानता था खूनी को ,
वो नौजवान न लौट कर आया...
कह रही है जिंदगी कातिल समझ ले उसके सर पे छा चुका है मौत का साया...
सदियों के कर्मों की है कहानी जिसे....
कहते हैं ओ स्कैंडल ओ.....
कहते हैं ओ स्कैंडल ओ.....
कहते हैं ओ स्कैंडल ओ !!!!!
पैरोडी मेकिंग प्रतियोगिता के अंतिम दौर फाइनल स्टेज परफॉर्मेंस के लिए 75 टीमों में से कुल 9 टीमों को शॉर्टलिस्ट किया जाना था। शॉर्टलिस्टिंग की प्रक्रिया के लिए हमें हमारा लिखा हुआ गाना रिकॉर्ड करके ऑनलाइन साइट पर उसे सबमिट करना था। गाना रिकार्ड करके सबमिट तो हमने कर दिया था पर कोई उम्मीद नहीं थी कि हम शॉर्टलिस्ट होंगे ! जब शॉर्टलिस्टिंग का रिज़ल्ट आया तब यह हमारे लिए एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी क्योंकि प्रतियोगिता बहुत बड़ी थी और आयोजक उससे भी बड़ा ! आईआईटी दिल्ली ! देशभर के विभिन्न कॉलेजों की 75 टीमें थीं। उन 75 में टॉप दस में आना हमारे लिए एक उपलब्धि जैसा ही था ! पर उसके बावजूद हम यहीं नहीं रुके सभी टीमों को मात देकर प्रथम आए। लिरिक्स तय करने के बाद अब मुश्किल ये थी कि इस पर एक्टिंग कैसी की जाएगी ? हम आठ लोग सभी अलग दिशाओं में जा रहे थे कोई भी एक बात पर राज़ी नहीं हो पा रहा था...हम लोग इतने त्रस्त हो चुके थे कि एक्टिंग वाला हिस्सा नहीं करने का मन बना रहें थे। आज ये खिताब जीतने के बाद लगता है कि हमारी मेहनत व्यर्थ तो नहीं गुजरी ! फाइनल परफॉर्मेंस की एक रात पहले तक भी हमारा एक्टिंग वाला हिस्सा स्पष्ट ही नहीं था सुबह फाइनल मुकाबला है और यहां हमने ये तक तय नहीं किया था कि आखिर स्टेज पर करेंगे क्या !?
1-2 अप्रैल की वो मध्यरात्रि जब हमारी टीम में भयंकर झगड़ा हो गया ! यहां तक नौबत आ गई थी कि एक सदस्य यह कह उठा कि "जाओ करलो मेरे बिना पैरोडी !" इस बात पर हमारे टीम लीडर ने जमकर फटकार लगाई उस डांट का असर यह हुआ कि हम पूरी रात नहीं सोए सब लोग सुबह 6:00 बजे तक प्रैक्टिस कर रहे थे बाद में सब झगड़े का निपटारा हुआ और सेटलमेंट करवाके पूरी टीम बास्केटबॉल खेलने चले गई। नींद पूरी करने के बजाए हम बास्केटबॉल खेलने लग गए कोई जिम जाने लग गया और चंद घंटों में तैयार होके निकल पड़े आईआईटी दिल्ली ! आईआईटी दिल्ली पहुंचने के बाद जो माहौल देखने को मिला जो वातावरण था सच में मोहित करने वाला था।
आईआईटी में मेरा युलू बाइक्स पर अनुभव अद्भुत था...युलू परिवहन का एक प्लेटफॉर्म है जो माइक्रो मोबिलिटी व्हीकल्स (एमएमवी) को एक एप्लिकेशन के माध्यम से उपयोगकर्ताओं से जोड़ता है। मैंने उसे एक आम उपयोगकर्ता की तरह प्ले स्टोर से इंस्टॉल किया उसके बाद पेटीएम का उपयोग करके न्यूनतम भुगतान किया और वहां से मेरा युलू का सफ़र शुरु हो गया...युलू ऐप जीपीएस के माध्यम से आस-पास या किसी भी युलू ज़ोन में उपलब्ध वाहनों को ट्रैक और प्रदर्शित करता है। अपनी यात्रा शुरू करने के लिए युलू बाइक पर दिए गए क्यूआर कोड को मैंने स्कैन करा और आईआईटी दिल्ली के कैम्पस से मैं और मेरा दोस्त सुमित बाहर दिल्ली घूमने निकल पड़े...दिल्ली की सड़कों पर युलू बाइक चलाते हुए मैं वसंत विहार वसंत कुंज तक जा पहुंचा और पुराना जेएनयू परिसर भी देखा। दिल्ली की सड़कों पर युलू बाइक्स का मेरा सफ़र बेहद खूबसूरत रहा।
जब हमारे फाइनल परफॉर्मेंस का समय आया तो सूजी आंखें व थका हुआ शरीर लेके हम आईआईटी दिल्ली पहुंच तो गए थे लेकिन जब परफॉर्मेंस की बारी आई तब न जाने ऐसी कौनसी दिव्य शक्ति हमारे अंदर प्रवाहित हो चली गई और ऐसी जगह बनाई कि हम दुगने जोश से स्टेज पर ऐसा परफॉर्मेंस देकर आए कि हमारे एक्ट के बीच में कई सारे सीन पर जजेस और ऑडियंस ने तालियां बजाई। हमारी अनगिनत घंटों की योजना और अभ्यास ने तब रंग लाया जब हमारी परफॉर्मेंस के बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा !
सभी कॉलेजेस की टीमों की परफॉर्मेंस के बाद जब रिजल्ट्स की बारी आई तब हमारा दिल ज़ोर से धकधक करने लगा। जैसे ही होस्ट ने कहा "फर्स्ट प्राइज गोस टू एनएसएस बी यू !" हम सब जोर से उछल पड़े और चिल्लाने लग गए इतनी अप्रत्याशित खुशी इतना खुशहाल जोशिला भाव वह भाव मैं यहां शब्दों में बयां नहीं कर पा रहा हूं। स्टेज पर हमारी पूरी टीम जजेस द्वारा प्रमाण पत्र लेने गई...फोटो सेशन हुआ...सब लोग हमारे लिए तालियां बजा रहे थे... एक सुंदर सी ट्रॉफी पूरी टीम को प्रदान की गई।
यह सब इतना गौरवान्वित महसूस करा रहा था क्योंकि स्कूल लाइफ में मैंने अपने स्कूल का राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया है पर कॉलेज में यह सौभाग्य पहली बार प्राप्त हो रहा था। बेनेट यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और हमने उसे बखूबी निभाया ! इससे भी बड़े गौरव की बात मेरे लिए यह थी कि हम 8 लोगों की टीम में से 5 लोग मेरी ही क्लास के थे जो मेरे साथ हिन्दी पत्रकारिता के विद्यार्थी है व मेरे सहपाठीगण है।
बेनेट यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट काउंसिल ने हमारी यह उपलब्धि पूरी यूनिवर्सिटी के साथ साझा करी और सभी 6000 से ज्यादा विद्यार्थियों को मेल के माध्यम से यह जानकारी दी तत्पश्चात कॉलेज में मेरे दोस्तों के व फैकल्टीज के मुझे बधाई संदेश प्राप्त हुए।
आखिरकार लड़ते झगड़ते...हस्ते मुस्कुराते हुए...अनगिनत यादें बनाते हुए...हमने आईआईटी दिल्ली के काइज़ेन का वो मैदान फतह कर ही लिया !
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